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फिर याद आए ऋषिकेश मुखर्जी

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Bol Bachchan Movie Review

कॉमेडी का मतलब सिर्फ फूहड़ मजाक और अश्लील चुटकुले ही नहीं होते. टाइमिंग और सही जगह पर की गई कॉमेडी का कोई सानी नहीं होता. क्लासिकल कॉमेडी फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी की “गोलमाल” को ही ले लीजिए. आज तक बॉलिवुड में इसके दर्जे की कोई कॉमेडी फिल्म नहीं बनी और आगे भी शायद ही बनेगी. लेकिन रोहित शेट्टी जिन्होंने आज के सिनेमा में कॉमेडी का रस घोलने का काम किया है उन्होंने इस क्लासिकल कॉमेडी की नकल कर एक बेहतरीन फिल्म पेश की है. फिल्म “बोल बच्चन” रोहित शेट्टी के नई कॉमेडी फिल्म है.

अजय देवगन की बेमिसाल कॉमिक टाइमिंग से भरपूर इस फिल्म को आप देखे बिना रह नहीं सकते. तो आइए जानते हैं फिल्म की कहानी और समीक्षा.

फिल्म का नाम: बोल बच्चन

बैनर: अजय देवगन फिल्म्स, श्री अष्टविनायक सिनेविजन लिमिटेड

निर्माता: अजय देवगन

निर्देशक: रोहित शेट्टी

संगीत: हिमेश रेशमिया, अजय-अतुल

कलाकार: अजय देवगन, अभिषेक बच्चन, असिन, प्राची देसाई, कृष्णा अभिषेक, अर्चना पूरनसिंह, असरानी, नीरज वोरा.

रेटिंग: ****



Story of Bol Bachchan: बोल बच्चन की कहानी

पृथ्वीराज रघुवंशी (अजय देवगन) राजस्थान के रनकपुर इलाके में एक अखाड़े के बादशाह हैं और उन्हें झूठ से सख्त नफरत है. इसके साथ ही उन्हें अंग्रेजी का भी शौक है. अब यह बात अलग है कि उनकी अंग्रेजी अच्छे-अच्छों के होश उड़ाने वाली है.

दिल्ली में रहने वाला अब्बास अली (अभिषेक बच्चन) आर्थिक तंगी से गुजर रहा है और वह दिल्ली छोड़ अपनी बहन सानिया (असिन) के साथ एक छोटे शहर रकनपुर आ पहुंचता है ताकि वहां कुछ काम कर पैसा कमा सके. अब्बास को अखाड़ा किंग पृथ्वीराज रघुवंशी (अजय देवगन) के यहां सुपरवाइजर का काम मिल जाता है, परिस्थितिवश उसे पृथ्वीराज को अपना नाम गलत बताना पड़ता है. अब इस गलती को छुपाने के लिए उसे अपने जुड़वा भाई के होने की नकली कहानी गढ़नी पड़ती है. अब्बास को उम्मीद नहीं रहती कि यह झूठ उस पर बहुत भारी पड़ने वाली है. अब्बास को पृथ्वीराज की बहन (प्राची देसाई) से इश्क हो जाता है और इसी दौरान अब्बास एक के बाद एक झूठ बोलता जाता है.

Review of Bol Bachchan

रोहित शेट्टी की फिल्मों में नाटकीयता, लाउड डॉयलॉगबाजी और हाइपर कैरेक्टर रहते हैं. कॉमेडी के साथ एक्शन की संगत भी चलती रहती है. इस फिल्म में भी आपको उड़ती कारें, हवा में एक्शन जैसी चीजें देखने को मिलेंगी लेकिन जिस चीज के लिए आप इस फिल्म को बाद में भी याद करेंगे वह है इसकी कॉमिक टाइमिंग खासकर अजय देवगन और कृष्णा की.

बोल बच्चन के कुछ प्रसंग लंबे होने की वजह से खींच गए हैं. लेखक और निर्देशक ने यह सावधानी जरूर रखी है कि हंसी की लहरें थोड़ी-थोड़ी देर में आती रहें. कभी-कभी हंसी की ऊंची लहर आती है तो दर्शक भी खिलखिलाहट से भीग जाते हैं. चुटीली पंक्तियां और पृथ्वीराज रघुवंशी की अंग्रेजी हंसी के फव्वारों की तरह काम करती हैं. ऐसे संवाद बोलते समय सभी कलाकारों की टाइमिंग और तालमेल उल्लेखनीय हैं. खासकर गलत अंग्रेजी बोलते समय अजय देवगन का कांफिडेंस देखने लायक है.

अगर अभिनय की बात करें तो अजय देवगन सब पर भारी नजर आते हैं. अजय देवगन के अभिनय और प्रदर्शन से संतुष्टि मिलती है, लेकिन साथ ही दुख होता है कि एक उम्दा एक्टर कामेडी के ट्रैप में कितना फंस गया है. हिंदी फिल्मों का यह अजीब दौर है. प्रतिभाएं मसखरी पर उतरने को मजबूर हैं. अभिषेक बच्चन ने दोनों किरदारों को अलग भाव मुद्राएं देने में सफल रहे हैं. अन्य कलाकारों में कृष्णा उल्लेखनीय हैं. असिन और प्राची देसाई फिल्म में क्यों रखी गई हैं यह किसी को समझ ही नहीं आता लेकिन कहते हैं ना ‘बिन आलू समोसा अधूरा’ शायद इसी तरह बॉलिवुड फिल्मों में हिरोइन के बिना हीरो अधूरा होता है.

अंत में बात अगर संगीत की करें तो आपको फिल्म के कुछ गाने आने वाले कई दिनों तक म्यूजिक चार्ट्स के टॉप पर नजर आएंगे.

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