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यूं तो बॉलिवुड में क्रिकेट पर आधारित कई फिल्में पहले भी बन चुकी हैं लेकिन सभी को नए और उभरते हुए कलाकारों को लेकर एक प्रयोग के तौर पर ही निर्मित किया गया. इकबाल, रन आउट, चेन कुली की मेन कुली की आदि ऐसी ही फिल्मों के उदाहरण हैं जिनका निर्माण भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता को भुनाने और धन कमाने के लिए किया गया. लेकिन अब शर्मन जोशी और बोमन इरानी जैसे स्थापित और प्रतिष्ठित कलाकार भी क्रिकेट के चार्म से खुद को बचा नहीं सके. कल रिलीज हुई उनकी फिल्म फरारी की सवारी पर्दे पर काफी धमाल मचा रही है. अभिनय या कहानी के अतिरिक्त इसका कारण विधु विनोद चोपड़ा का नामी और लोकप्रिय बैनर या फिर कलाकारों की प्रसिद्धि भी हो सकती है.
बैनर: विधु विनोद चोपड़ा प्रोडक्शन्स
निर्देशक: राजेश मापुस्कर
कलाकार: शरमन जोशी, बोमन ईरानी, ऋत्विक साहोरे, विद्या बालन (मेहमान कलाकार)
रिलीज डेट: 15 जून, 2012
फिल्म की कहानी रूसी (शरमन) और उसके बेटे के इर्द-गिर्द घूमती है. रूसी के बेटे को क्रिकेट के अलावा कुछ भी नहीं सूझता. उसका सपना है कि वह एक दिन लॉर्ड्स के मैदान पर क्रिकेट खेले. रुसी अपने बेटे की हर ख्वाहिश को पूरा करने की भरपूर कोशिश करता है. रूसी स्वभाव से सीधा-सादा है और एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में कार्य करता है. उसके बेटे को एक बार लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में खेलने का मौका मिलता है पर उसके लिए रूसी को एक बड़ी रकम इकठ्ठा करनी होती है. ऐसे में एक वेडिंग प्लानर रूसी से कहता है कि अगर वह एक नेता के बेटे की शादी के लिए फरारी कार का इंतजाम कर दे तो यह पैसा वह उसे दे सकता है. ईमानदार रुसी जिंदगी में पहली बार कोई गलत काम करता है और एक फरारी के मालिक को बताए बिना उसकी कार इस शादी में ले जाता है. लेकिन यहां से शुरू होता है घटनाओं का एक ऐसा सिलसिला कि हालात उलझते चले जाते हैं.
फिल्म समीक्षा
क्रिकेट पर आधारित फरारी की सवारी फिल्म में पिता-पुत्र के संबंध को भी बड़े मार्मिक तरीके से दर्शाया गया है. बैट-बॉल के अलावा फिल्म का भावनात्मक पक्ष भी बहुत मजबूत है. लेकिन फिर भी फिल्म जबरन भावुक नहीं होती.
फिल्म यह साफ प्रदर्शित करती है कि मिडिल क्लास फैमिली और अभावों के बीच भी प्रतिभाएं रंग लाती हैं, बस उसके लिए मेहनत और परिवार का सहयोग मिलना चाहिए. फिल्म में सचिन तेंदुलकर और उन
बेवजह या अत्याधिक भावुक ना होने के बावजूद फिल्म मध्यमवर्गीय परिवार की मुश्किलों को उजागर करती है. यह फिल्म ऋत्विक सहारे, शरमन जोशी और बमन ईरानी के प्रभावी अभिनय के लिए भी देखी जा सकती है. वहीं सहयोगी कलाकारों का अभिनय भी बहुत खूब रंग लाया है. सिनेमैटोग्राफर सुधीर पलासणे ने विभिन्न परिस्थितियों में उपजे भावों को भी बखूबी प्रदर्शित किया है.
संगीत
फिल्म का संगीत ज्यादा शोर वाला ना होकर उपयुक्त और परिस्थियों के अनुकूल है. विद्या बालन का आयटम सॉन्ग माला जाऊ दे भी अच्छा बन पड़ा है.
हमारे देश में क्रिकेट एक ग्लैमरस धर्म के रूप में प्रचारित किया जाता है जिसके प्रति आकर्षित हमारे बहुत से युवा आगे चलकर क्रिकेट को ही अपना कॅरियर बनाना चाहते हैं. लेकिन पैसे और सहयोग की कमी उन्हें अपने सपनों को पूरा नहीं करने देती ऐसे में फरारी की सवारी शायद उन्हें एक सकारात्मक सोच के साथ अपने सपने सच करने के लिए प्रेरित कर सकती है.
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