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Movie Preview and Inside Story of “Agneepath “
1990 में अमिताभ बच्चन जब फिल्म “अग्निपथ” में नजर आए थे तो उनके किरदार को लोगों ने बहुत पसंद किया था. फिल्म की कहानी भी बहुत बेहतरीन थी लेकिन अधिक मारधाड़ होने के कारण फिल्म फ्लॉप हो गई. पर उस फिल्म का विजय दीनानाथ चौहान एक बार फिर लौट आया है नई कहानी और नए रंग के साथ. एक बार फिर रुपहले पर्दे पर अग्निपथ से सब रूबरू होंगे. ऋतिक रोशन, प्रियंका चोपड़ा, ऋषि कपूर और संजय दत्त जैसे बेहतरीन किरदारों के साथ यह फिल्म साल 2012 की पहली सुपरहिट फिल्म हो सकती है.
इस फिल्म में माना जा रहा है कि ऋतिक रोशन ने गुजारिश के बाद अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिया है. फिल्म के कई एक्शन स्टंट उन्होंने खुद ही किए हैं. आखिर जब आपको अमिताभ बच्चन के किरदार में पिरोया जाए तो उम्मीदें बढ़ ही जाती हैं और इसी बढ़े हुए उम्मीदों के बोझ ने ऋतिक को सर्वश्रेष्ठ अभिनय करने की प्रेरणा दी है. इस फिल्म में उनकी बॉडी देखने लायक है.
संजय दत्त ने कांचा के किरदार में खुद को इस तरह ढाल लिया है कि आपको उनसे जरूर नफरत होगी पर उनके अंदर के अभिनेता से आप जरूर प्यार करने लगेंगे. इस किरदार के लिए उन्होंने अपना शरीर और रूप पूरी तरह से बदल लिया है. संजय दत्त और ऋतिक रोशन ने मिलकर फिल्म को बेहतरीन बनाने के लिए बहुत मेहनत की है. इसके साथ ही फिल्म में काली बनी प्रियंका चोपड़ा भी अपने ग्लैमरस रोल से निकलकर सादे रूप में हैं. काफी लंबे समय बाद ऋषि कपूर बदले-बदले रूप में नजर आ रहे हैं. अगर यह फिल्म सुपरहिट साबित होती है तो यकीनन यह ऋषि कपूर के लिए एक कमबैक फिल्म होगी.
फिल्म अग्निपथ 26 जनवरी को रिलीज होगी.
फिल्म अग्निपथ की कहानी
मांडवा नाम के एक छोटे से गांव में रहने वाले विजय दीनानाथ चौहान को उसके आदर्शवादी पिता ने आदर्श, सिद्धांत और ईमानदारी, जिसे वह अग्निपथ कहते हैं, की बातें सिखाई हैं. विजय की जिंदगी उस समय तबाह हो जाती है जब ड्रग डीलर कांचा उसके पिता को मौत के घाट उतार देता है. विजय अपनी गर्भवती मां के साथ मुंबई पहुंच जाता है और अब उसकी जिंदगी का एक ही मकसद है कि मांडवा लौटकर अपने पिता के नाम पर लगे धब्बे साफ करना, जो कांचा ने लगाया है. मुंबई में 12 वर्षीय विजय की जिंदगी संवारने का जिम्मा रऊफ लाला लेता है. कांचा तक पहुंचने के लिए विजय को कई रिश्ते तोड़ने और बनाने पड़ते हैं. विजय को हर कदम और मोड़ पर उसकी सबसे अच्छी दोस्त काली का समर्थन मिलता है. पन्द्रह साल बाद विजय की कांचा के प्रति नफरत उसे मांडवा ले जाती है, जहां दोनों आमने-सामने होते हैं.
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