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शक्ल पर मत जा : फिल्म समीक्षा

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पिछले हफ्ते रिलीज हुई फिल्म “रॉकस्टार” का जादू अभी भी दर्शकों के सर से उतरा नहीं है और शायद यही वजह है कि इस हफ्ते सिर्फ एक ही फिल्म रिलीज हो रही है और वह भी छोटे बजट की “शक्ल पर मत जा”. हास्य व्यंग्य से भरी इस फिल्म को मात्र मनोरंजन के लिहाज से बनाया गया है ना कि पैसा कमाने के लिए. फिल्म के कलाकारों में रघुवीर यादव ही एक जाना पहचाना नाम हैं. फिल्म का निर्माण ऋषिता भट्ट ने किया है. वह इस फिल्म की प्रोड्यूसर हैं. ऋषिता भट्ट ने 2001 में फिल्म अशोका से अपने कॅरियर की शुरूआत की थी पर वह अधिक सफल नहीं हो सकी इसलिए उन्होंने अब निर्माण का रास्ता चुन लिया है.


फिल्म बहुत ही सिंपल और सीधी सी है. पहचान की भूलों से कई मामलों में निर्दोष भी फंस जाते हैं, लेकिन क्या शक्ल पे मत जा के चारों मुख्य किरदार पूरी तरह से निर्दोष हैं या उनका कोई दूसरा मकसद भी है? यह सोचने वाली बात है. तो चलिए जानते हैं शक्ल पर मत जा की कहानी.


Shakal-Pe-Mat-Jaफिल्म का नाम: शक्ल पर मत जा

निर्माता: दीपक जालन, सरिता जालन, ऋषिता भट्ट

निर्देशक: शुभ

संगीत: सलीम-सुलेमान, नितिन कुमार गुप्ता, हनी सिंह

कलाकार: शुभ, मास्टर प्रतीक कटारे, सौरभ शुक्ला, चित्रक, रघुवीर यादव, आमना शरीफ, जाकिर हुसैन, हर्ष पारेख

रेटिंग: *


फिल्म की कहानी

फिल्म की कहानी चार युवाओं की कहानी है जिन्हें शंका के आधार पर दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पकड़ लिया जाता है. वे अपनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म के लिए एक अमेरिकन एयरलाइंस एयरक्रॉफ्ट की लैंडिंग शूट कर रहे थे. उनका अपराध ये था कि उन्होंने न किसी को इस बारे में बताया और न ही इजाजत ली. उन पर निगाह गई और वे पकड़े गए.


अपने बारे में वे जैसे-जैसे स्थिति स्पष्ट करते हैं, मुसीबत के दलदल में वे और फंसते जाते हैं. इन्वेस्टिगेशन रूम में सीआईएसएफ द्वारा उनसे पूछताछ जारी है. उस दिन हाई अलर्ट डे घोषित है, इसलिए उनके साथ कड़ाई से पेश आया जा रहाहै.


शक्ल से वे सीधे-सादे लगते हैं, लेकिन उन पर संदेह धीरे-धीरे बढ़ता जाता है. वे जो चीज अपने बारे में बताते हैं वो उन्हें आतंकवादी होने की दिशा में ले जाती है. जैसे रोहन (चित्रक) के बैग से राष्ट्रपति भवन की फुटेज निकलती है. साथ ही अरब और पाकिस्तान की पोर्न फिल्में भी पाई जाती हैं.


धुव्र (मास्टर प्रतीक कटारे) के बैग से एक बम जैसा डिवाइस मिलता है जिसके बारे में उसका कहना है कि वो उसका फिजिक्स का प्रोजेक्ट है. बुलाई (हर्ष पारेख) के पास न सेल फोन है और न ही कोई आईडी, ऊपर से उसकी शक्ल एक वांटेड आतंकवादी से मिलती-जुलती है.


पूछताछ के दौरान ही रिपोर्ट मिलती है कि आतंकवादी का एक समूह दिल्ली में है जो हमला करने की योजना बना रहा है. इससे इन चारों पर संदेह करने की एक और वजह मिल जाती है. शक्ल पर मत जा गलत समय पर गलत जगह होने की कहानी है. साथ ही इस कहानी में यह भी दिखाया गया है कि भारत की सिक्योरिटी फोर्सेज किस तरह गलत आदमी के पकड़े जाने के बाद भी उनकी अच्छी तरह से खबर लेती हैं.


फिल्म की समीक्षा

फिल्म की कहानी बहुत ही सीधी सी है लेकिन निर्देशक ने इसमें कुछ खास करने की सोची ही नहीं. ना ही कोई बड़ा सितारा इस फिल्म से जुड़ा हुआ है. ले देकर एक अच्छी कहानी में कलाकारों की कमी है. लेकिन हां अगर आप अपना फ्लेवर चेंज करना चाहते हैं और नए कलाकारों को झेल सकते हैं तो आप फिल्म देखने जरूर जाएं.


फिल्म कॉमेडी पर आधारित है लेकिन कॉमेडी भी अगर टाइमिंग पर ना हो तो मजा नहीं आता. फिल्म में टाइमिंग सबसे बड़ी कमजोरी है. इसके अलावा फिल्म में कोई ऐसा गाना भी नहीं जिसे आप सिनेमा हॉल के बाहर गुनगुना सके.


अगर अभिनय की बात की जाए तो रघुवीर यादव ने ही तारीफ के लायक काम किया है बाकी तो सिर्फ जैसे किसी भी तरह काम निपटाने के मूड में थे.


ले देकर कहा जाए तो अगर आपकी जेब भारी है और आप कुछ अलग करने के मूड में हैं तो फिल्म आपके लिए झक्कास है वरना कुछ दिन रुककर टीवी पर ही इस फिल्म को देखना सही होगा.

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