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भेजा फ्राय 2 : पिछली से कमजोर (Bheja Fry 2 : Movie Review)

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Bheja Fry 2 review

इतिहास खुद को दोहराता जरूर है लेकिन हर बार नहीं. फिल्मों के सिक्वल बनाने वालों को यह समझना होगा कि जो फिल्म पहले पार्ट में अच्छा करती है जरूरी नहीं कि वह दूसरे पार्ट में भी हिट ही हो. भेजा फ्राई 2 तो दूसरों का भेजा फ्राइ करना चाहती थी पर लगता है उसका खुद का भेजा खिसक गया. दर्शकों में उत्सुकता तो थी लेकिन उनके हाथ लगी मायूसी. फिर भी विनय पाठक के कॉमेडियन अंदाज की सराहना करनी ही होगी.

Bheja Fryमुख्य कलाकार: विनय पाठक, के के मेनन, मिनिषा लांबा, अमोल गुप्ते, सुरेश मेनन आदि.

Cast: Vinay Pathak, Kay Kay Menon, Minissha Lamba, Suresh मनों

निर्देशक: सागर बल्लारी (Sagar Ballary)

तकनीकी टीम: निर्माता- मुकुल देओरा (Mukul Deora)


कथा- सागर बल्लारी, पटकथा-संवाद-शरद कटारिया, सागर बल्लारी, गीत-शकील आजमी, श्री डी, सोनी, संगीत-स्नेहा खानवलकर, इश्क बेक्टर, सागर देसाई

सिक्वल की महामारी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में फैल चुकी है. भेजा फ्राय 2(Bheja Fry 2) उसी से ग्रस्त है. पिछली फिल्म की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश में नई फिल्म विफल रहती है. सीधी वजह है कि मुख्य किरदार भारत भूषण(Bharat Bhushan) पिछली फिल्म की तरह सहयोगी किरदार को चिढ़ाने और खिझाने में कमजोर पड़ गए हैं. दोनों के बीच का निगेटिव समीकरण इतना स्ट्रांग नहीं है कि दर्शक हंसें.

पिछली फिल्म में विनय पाठक को रजत कपूर(Rajat Kapoor) और रणवीर शौरी का सहयोग मिला था. इस बार विनय पाठक(Vinay Pathak) के कंधों पर अकेली जिम्मेदारी आ गई है. उन्होंने अभिनेता के तौर पर हर तरह से उसे रोचक और जीवंत बनाने की कोशिश की है लेकिन उन्हें लेखक का सपोर्ट नहीं मिल पाया है. के के मेनन को भी लेखक ठीक से गढ़ नहीं पाए हैं. फिल्म भी कमरे से बाहर निकल गई है, इसलिए किरदारों को अधिक मेहनत करनी पड़ी है. बीच में बर्मन दा के फैन के रूप में जिस किरदार को जोड़ा गया है, वह चिप्पी बन कर रह गया है. फिल्म में और भी कमजोरियां हैं. क्रूज के सारे सीन जबरदस्ती रचे गए लगते हैं. संक्षेप में पिछली फिल्म जितनी नैचुरल लगी थी, यह उतनी ही बनावटी लगी है.

इस फिल्म को देखते हुए हिंदी प्रेमी दुखी हो सकते हैं कि शुद्ध और धाराप्रवाह हिंदी बोलना भी मजाक का विषय बन सकता है. ईमानदार होने का मतलब जोकर होना है. आधुनिक जीवन शैली से अपरिचित व्यक्ति बौड़म होता है. बेचारा भला आदमी रचने के लिए वास्तव में हरिशंकर परसाई की समझ और संवेदनशीलता चाहिए. माफ करें नेक इरादे और कोशिश के बावजूद भेजा फ्राय 2 अपने समय और समाज से पूरी तरह कटी हुई है. ब्लैक कामेडी तो अपने समय का परिहास करे तभी अपील करती है.

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