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रेटिंग : **** चार स्टार
इसे हम संजय लीला भंसाली की गुजारिश कहें या उनकी एक अनोखी रंगीन सपनीली दुनिया है, जो एक जादू की तरह सबको मदहोश करती रहती है. फिल्म देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि संजय लीला भंसाली के सुंदर संसार में सब कुछ सामान्य से अधिक सुंदर, बड़ा और विशाल होता है. भंसाली के किरदारों का सामाजिक आधार एक हद तक वायवीय और काल्पनिक होता है. उनके आलोचक कह सकते हैं कि भंसाली अपनी फिल्मों की खूबसूरती, भव्यता और मैलोड्रामा की दुनिया को रीयल नहीं होने देते. गुजारिश की भी यही सीमा है.
क्या पीडि़त व्यक्ति को इच्छा मृत्यु का अधिकार मिलना चाहिए?
गुजारिश का विषय इच्छा मृत्यु है. जिसे एक अद्भुत प्रेमकहानी की तरह पेश किया गया है. एथन और सोफिया की प्रेम कहानी. एक ऐसी प्रेम कहानी जो आपके दिल को छू जाएगी.
फिल्म में एथन मस्कारेनहास को क्वाड्रो प्लेजिया का मरीज दिखाया गया है जिसकी जिंदगी बिस्तर और ह्वील चेयर तक सीमित है. लेकिन वह अपनी इस जिंदगी को स्वीकार कर लेता है. वह जिंदगी को दिल से जीने की वकालत करता है. वह अगले बारह सालों तक अपना उल्लास बनाए रखता है, लेकिन लाचार जिंदगी उसे इस कदर तोड़ती है कि आखिरकार वह इच्छा मृत्यु की मांग करता है. असाध्य रोगों और लाचारगी से मुक्ति का अंतिम उपाय मौत हो सकती है, लेकिन देश में इच्छा मृत्यु की इजाजत नहीं दी जा सकती. अपना जीवन एथन को समर्पित कर चुकी सोफिया आखिरकार उसके लिए वरदान साबित होती है.
सोफिया, एथन की नर्स, जिस पर वह पूरी तरह निर्भर है. और सोफिया भी एथन का साथ पाकर खुश है क्योंकि इस तरह उसको अपने दुखी दांपत्य जीवन से बाहर निकलने का मकसद मिल जाता है. दोनों का आत्मिक प्रेम रूहानी है.
अभिनय
गुजारिश भंसाली, सुदीप चटर्जी, सब्यसाची मुखर्जी, रितिक रोशन और ऐश्वर्या राय की फिल्म है. गोवा के लोकेशन ने फिल्म का प्रभाव बढ़ा दिया है. एक्टिंग को बॉडी लैंग्वेज से जोड़कर मैनरिज्म पर जोर देने वाले एक्टर रितिक रोशन से सीख सकते हैं कि जब आप बिस्तर पर हों और आपका शरीर लुंज पड़ा हो तो भी सिर्फ आंखों और चेहरे के हाव-भाव से कैसे किरदार को सजीव किया जा सकता है. निश्चित ही रितिक रोशन अपनी पीढ़ी के दमदार अभिनेता हैं. फिल्म में ऐश्वर्या राय को देख यह प्रतीत होता है कि उम्र बढ़ने के साथ वह निखरती जा रही हैं. कोर्ट में उनका बिफरना, क्लब में उनका नाचना और क्लाइमेक्स के पहले खुद को मिसेज मस्कारेनहास कहना. इन दृश्यों में ऐश्वर्या के सौंदर्य और अभिनय का मेल याद रह जाता है. वकील बनी शरनाज पटेल भी अपनी भूमिका के साथ न्याय करती हैं. परन्तु आदित्य रॉय कपूर थोड़े कमजोर रह गए.
संगीत
“बस इतनी सी गुज़ारिश है कि यह 100 ग्राम जिंदगी महकती रहती है”
फिल्म का संगीत विशेष रूप से उल्लेखनीय है. भंसाली ने स्वयं धुन बनाई है. संगीत सुहाना है जो मन शांत करता है. गीत के बोल दिल छू जाते हैं जिसके कारण गुजारिश के गाने सभी को पसंद आ रहे हैं.
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