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मुख्य कलाकार : अजय देवगन, कोंकणा सेन शर्मा, परेश रावल, सतीश कौशिक, संजय मिश्र, अखिलेन्द्र मिश्र आदि।
निर्देशक : अश्वनी धीर
तकनीकी टीम : निर्माता- अमीता पाठक, लेखक- अश्वनी धीर, गीत- इरशाद कामिल, संगीत- प्रीतम
***1/2 साढ़े तीन स्टार
पिछले कुछ सालों में लाउड कामेडी ने यह स्थापित किया है कि ऊंची आवाज मैं चिल्लाना, गिरना-पड़ना और बेतुकी हरकतें करना ही कामेडी है। प्रियदर्शन और डेविड धवन ऐसी कामेडी के उस्ताद माने जाते हैं। उनकी कामयाबी ने दूसरे निर्देशकों को गुमराह किया है। दर्शक भी भूल गए है कि कभी हृषीकेष मुखर्जी, गुलजार और बासु चटर्जी सरीखे निर्देशक सामान्य जीवन के हास्य को साधारण चरित्रों से पेश करते थे। अश्रि्वनी धीर की अतिथि तुम कब जाओगे? उसी श्रेणी की फिल्म है। यह परंपरा आगे बढ़नी चाहिए।
पुनीत फिल्मों का संघर्षशील लेखक है। वह कानपुर से मुंबई आया है। उसकी पत्नी मुनमुन बंगाल की है। दोनों का एक बेटा है। बेटा नहीं जानता कि अतिथि क्या होते हैं? एक दिन चाचाजी उनके घर पधारते हैं, जो खुद को पुनीत का दूर का रिश्तेदार बताते हैं। शुरू में उनकी ठीक आवभगत होती है, लेकिन छोटे से फ्लैट में उनकी मौजूदगी और गंवई आदतों से पुनीत और मुनमुन की जिंदगी में खलल पड़ने लगती है। चाचाजी को घर से भगाने की युक्तियों में बार-बार विफल होने के क्रम में ही पुनीत और मुनमुन को एहसास होता है कि कैसे चाचाजी उनकी रोजमर्रा जिंदगी के हिस्सा हो गए हैं। अश्रि्वनी धीर ने अतिथि के इस प्रसंग को रोचक तरीके से फिल्म में उतारा है। उन्होंने फिल्म को बढ़ाने के लिए कुछ दृश्य और प्रसंग जोड़े हैं, जिनसे मूल कहानी थोड़ी ढीली होती है। फिर भी अजय देवगन, परेश रावल, कोंकणा सेन शर्मा और सहयोगी कलाकारों ने फिल्म को बांधे रखा है। परेश रावल की अभिनय क्षमता का अश्रि्वनी धीर ने सार्थक उपयोग किया है। अजय देवगन बहुमुखी अभिनेता के तौर पर निखर रहे हैं। वे लाउड कामेडी के साथ ऐसी हल्की-फुल्की कामेडी भी कर सकते हैं। कोंकणा सेन शर्मा तो हैं ही सहज अभिनेत्री। मुकेश तिवारी, संजय मिश्र, अखिलेन्द्र मिश्र और सतीश कौशिक का अभिनय और योगदान उल्लेखनीय है।
कोंकणा के संवादों में स्त्रीलिंग-पुल्लिंग की गलतियां उनके चरित्र को बारीकी से स्थापित करती है। इस फिल्म का कितने आदमी थे प्रसंग रोचक है। परेश रावल ने उस प्रसंग को अपने अंदाज से मजेदार बना दिया है। उन्हें वीजू खोटे का बराबर सहयोग मिला है। बस, एक ही शिकायत की जा सकती है कि परेश रावल को इतना ज्यादा वायु प्रवाह करते नहीं दिखाना चाहिए था। पर आजकल हिंदी फिल्मों का यह आम दृश्य हो गया है।
-अजय ब्रह्मात्मज
Source: Jagran Cine Maza
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