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मुख्य कलाकार : अमिताभ बच्चन, बेन किंग्सले, आर माधवन, राइमा सेन, सिद्धार्थ खेर, श्रद्धा कपूर, वैभव तलवार, ध्रुव गणेश, पंकज झा आदि।
निर्देशक : लीना यादव
तकनीकी टीम : निर्माता- अंबिका हिंदूजा, कथा-पटकथा-सवांद- लीना यादव, शिव सुब्रमण्यम और बेन रेखी (केवल संवाद), सिनेमैटोग्राफी – असीम बजाज, गीत – इरफान सिद्दिक, आसिफ अली बेग, अजिंक्य अय्यर , संगीत- सलीम सुलेमान
*** तीन स्टार
चलित और सामान्य फिल्मों की शैली से अलग है तीन पत्ती। इसके दृश्य विधान में नवीनता है। इस में हिंदी फिल्मों के घिसे-पिटे खांचों में बंधे चरित्र नहीं हैं। फिल्म की कहानी भी अलग सी है। एकेडमिक जगत, छल-कपट और लालच की भावनाएं और उन्हें चित्रित करने की रोमांचक शैली के कारण फिल्म उलझी और जटिल लग सकती है।
व्यंकट सुब्रमण्यम मौलिक गणितज्ञ हैं। वे गणित में प्रोबैबिलिटी के समीकरण पर काम कर रहे हैं। अपनी धारणाओं को आजमाने के लिए वे तीन पत्ती के खेल का सहारा लेते हैं। उनका लक्ष्य एकेडमिक है, लेकिन उनके साथ आए प्रोफेसर शांतनु और चार स्टूडेंट धन के लालच में हैं। इस लालच की वजह से उनके रिश्ते और इरादे में बदलाव आता है। आइजक न्यूटन अवार्ड लेने लंदन पहुंचे व्यंकट सुब्रमण्यम वहां के गणितज्ञ पर्सी से मन का भेद खोलते हैं। फिल्म प्ऊलैशबैक और वर्त्तमान मे ं चलने लगती है। वे उस कचोट का भी जिक्र करते हैं, जिसकी वजह से वे खुद को इस अवार्ड का हकदार नहीं मानते। फिल्म के अंत में हम देखते हैं कि उनके साथ छल करने वाला व्यक्ति ही उन्हें अवार्ड दिलवा कर प्रायश्चित करता है। आखिरकार तीन पत्ती हिंदी की पारंपरिक फिल्मों की लीक पर आ जाती है और यहीं फिल्म कमजोर पड़ जाती है।
लीना यादव ने रोचक कहानी बुनी है। उसे उसी रोचकता के साथ उन्होंने शूट भी किया है। उन्हें सिनेमैटोग्राफर असीम बजाज की पूरी मदद मिली है। स्पेशल इफेक्ट के जरिए वह मुख्य किरदारों केमनोभावों और दुविधाओं को भी पर्दे पर ले आती हैं। अमिताभ बच्चन ने गणितज्ञ व्यंकट की भूमिका को सहज रूप से विशिष्ट बनाया है, लेकिन इस बार उनकी संवाद अदायगी बनावटी लगी। वे चाल-ढाल में तो दक्षिण भारतीय व्यक्तित्व ले आते हैं, लेकिन बोलचाल में उनका परिचित पुरबिया अंदाज नहीं छूटता। आर माधवन इस बार अपने रोल के साथ न्याय नहीं कर सके हैं। नए एक्टर उम्मीद जगाते हैं। नीयत आयटम गीत में आई लड़की की मोहक और मादक अदाएं दृश्य के अनुकूल हैं। बेन किंग्सले इस फिल्म में सिर हिलाने, हामी भरने और सवाल पूछने तक ही सीमित रह गए हैं।
लीना यादव की तीन पत्ती हिंदी फिल्मों में आ रहे बदलाव की बानगी है। नई लीक पर चल रही ये फिल्में थोड़ी अनगढ़ और प्रयोगशील होती हैं, इसलिए दर्शकों को फार्मूलाबद्ध मनोरंजन नहीं दे पातीं।
-अजय ब्रह्मात्मज
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